वांछित मन्त्र चुनें

न॒ही नु वो॑ मरुतो॒ अन्त्य॒स्मे आ॒रात्ता॑च्चि॒च्छव॑सो॒ अन्त॑मा॒पुः। ते धृ॒ष्णुना॒ शव॑सा शूशु॒वांसोऽर्णो॒ न द्वेषो॑ धृष॒ता परि॑ ष्ठुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nahī nu vo maruto anty asme ārāttāc cic chavaso antam āpuḥ | te dhṛṣṇunā śavasā śūśuvāṁso rṇo na dveṣo dhṛṣatā pari ṣṭhuḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न॒हि। नु। वः॒। म॒रु॒तः॒। अन्ति॑। अ॒स्मे इति॑। आ॒रात्ता॑त्। चि॒त्। शव॑सः। अन्त॑म्। आ॒पुः। ते। धृ॒ष्णुना॑ शव॑सा। शू॒शु॒ऽवांसः॑। अर्णः॑। न। द्वेषः॑। धृ॒ष॒ता। परि॑। स्थुः॒ ॥ १.१६७.९

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:167» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:5» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मरुतः) महाबलवान् विद्वानो ! जो (वः) तुम्हारे और (अस्मे) हमारे (अन्ति) समीप में (शवसः) बल की (अन्तम्) सीमा को (नु) शीघ्र (नहि) नहीं (आपुः) प्राप्त होते और जो (आरात्तात्) दूर से (चित्) भी (धृष्णुना) दृढ़ (शवसा) बल से (शूशुवांसः) बढ़ते हुए (अर्णः) जल के (न) समान (धृषता) प्रगल्भता से ढिठाई से (द्वेषः) वैर आदि दोष वा धर्मविरोधी मनुष्यों को (परि, स्थुः) सब ओर से छोड़ने में स्थिर हों (ते) वे आप्त अर्थात् शास्त्रज्ञ धर्मात्मा हों ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - यदि हम लोग पूर्ण शरीर और आत्मा के बल को प्राप्त होवें तो शत्रुजन हमारा और तुम्हारा पराजय न कर सकें। जो दुष्ट और लोभादि दोषों को छोड़ें, वे अति बली होकर दुःख के पार पहुँचें ॥ ९ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मरुतो ये वोऽस्मे चान्ति शवसोऽन्तं नु नह्यापुर्ये चारात्ताच्चित् धृष्णुना शवसा शूशुवांसोऽर्णो न धृषता द्वेषः परिष्ठुस्त आप्ता भवेयुः ॥ ९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नहिः) निषेधे। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (नु) सद्यः (वः) युष्माकम् (मरुतः) महाबलिष्ठाः (अन्ति) समीपे (अस्मे) अस्माकम् (आरात्तात्) दूरात् (चित्) अपि (शवसः) बलस्य (अन्तम्) सीमानम् (आपुः) प्राप्नुवन्ति (ते) (धृष्णुना) दृढेन (शवसा) बलेन (शूशुवांसः) वर्द्धमानाः (अर्णः) उदकम्। अर्ण इत्युदकना०। निघं० १। १२। (न) इव (द्वेषः) द्वेषादीन् दोषान् धर्मद्वेष्ट्रीन् मनुष्यान् वा (धृषता) प्रागल्भ्येन (परि) सर्वतस्त्यागे (स्थुः) तिष्ठेयुः ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - यदि वयं पूर्णं शरीरात्मबलं प्राप्नुयाम तर्हि शत्रवोऽस्माकं युष्माकं च पराजयं कर्त्तुं न शक्नुयुः। ये दुष्टान् लोभादीन् दोषाँश्च त्यजेयुस्ते बलिष्ठा भूत्वा दुःखस्य पारं गच्छेयुः ॥ ९ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जर आपण पूर्ण शरीर व आत्म्याचे बल प्राप्त केले तर शत्रू आपला पराजय करू शकत नाही. जे दुष्टता व लोभ इत्यादी दोषांचा त्याग करतील ते अत्यंत बलवान होऊन दुःखाच्या पलीकडे जातील. ॥ ९ ॥